तेनालीराम हमेशा अपनी बुद्धिमता से सबका मन जीतने के लिए जाने जाते थे। आए दिन राज्य पर आई किसी न किसी समस्या को सुलझाने के लिए वे अपना दिमाग लगाया करते थे। इसी तरह जब एक बार दशहरा पर नाटक मंडली विजयनगर नहीं पहुंच पाई, तो तेनाली ने क्या किया, आइए जानते हैं।
काशी की एक नाटक मंडली हमेशा दशहरे से पहले विजयनगर आया करती थी। यह नाटक मंडली विजयनगर में रामलीला किया करती थी और नगर वासियों का मनोरंजन किया करती थी। यह एक तरह से विजयनगर की संस्कृति थी और ऐसा हर साल हुआ करता था, लेकिन एक साल ऐसा आया जब काशी नाटक मंडली के कई सदस्य बीमार पड़ गए और उन्होंने कह दिया कि वो विजयनगर नहीं आ पाएंगे। यह सुनकर महाराज कृष्णदेव राय और सारी प्रजा बहुत उदास हो गई।
दशहरे को अब सिर्फ कुछ ही दिन बाकी थे और ऐसे में किसी और नाटक मंडली को बुलाकर रामलीला का आयोजन करवाना बहुत मुश्किल था। दरबार के मंत्रियों और राजगुरु ने आसपास के गांव की नाटक मंडली को बुलाने की कोशिश की, लेकिन किसी का भी आ पाना बहुत मुश्किल था। सबको निराश देख तेनालीराम ने कहा, “मैं एक नाटक मंडली को जानता हूं। मुझे यकीन है कि वो विजयनगर में रामलीला करने के लिए जरूर तैयार हो जाएंगे।”
तेनाली की यह बात सुनकर सब खुश हो गए। इसके साथ ही राजा ने तेनाली को मंडली बुलाने की जिम्मेदारी सौंप दी और तेनाली ने भी रामलीला की तैयारी करना शुरू कर दी। विजयनगर को नवरात्र के लिए सजाया गया और रामलीला मैदान की साफ-सफाई करवा कर वहां बड़ा-सा मंच बनवाया गया। उसी के साथ मैदान पर बड़ा-सा मैला भी लगवाया गया।
जब नगर में रामलीला होने की खबर फैली, तो सारी जनता रामलीला देखने के लिए उत्सुक हो गई। रामलीला वाले दिन सभी लोग रामलीला देखने के लिए मैदान में इकट्ठे हो गए। वहीं, महाराज कृष्णदेव राय, सभी मंत्रीगण और सभा के अन्य सदस्य भी वहां मौजूद थे। सभी ने रामलीला का खूब मजा उठाया। जब नाटक खत्म हो गया, तो सभी ने उसकी बहुत तारीफ की। खासकर, नाटक मंडली में मौजूद बच्चों की कलाकारी सभी को बहुत पसंद आई थी। महाराज सभी से इतना खुश थे कि उन्होंने पूरी नाटक मंडली को महल में खाना खाने का न्योता दे दिया।
जब पूरी मंडली महल आई, तो सभी ने महाराज, तेनाली और अन्य मंत्रीगण के साथ भोजन किया। इस दौरान महाराज ने तेनालीराम से पूछा कि उन्हें इतनी अच्छी मंडली कहां से मिली? इस पर तेनाली ने उत्तर दिया, “ये मंडली बाबापुर से आई है, महाराज।”
“बाबापुर? इस जगह का नाम तो हमने कभी नहीं सुना। कहां है ये?”, महाराज ने आश्चर्य से पूछा।
“यहीं विजयनगर के पास ही है, महाराज।”
तेनाली की यह बात सुनकर मंडली के सदस्य मुस्कुराने लगे। इस पर महाराज ने उनसे मुस्कुराने की वजह पूछी, तो मंडली का एक बच्चा बोला, “महाराज, हम विजयनगर के ही रहने वाले हैं। इस मंडली को तेनाली बाबा ने तैयार करवाया है और इसलिए हमारा नाम बाबापुर की मंडली है।”
बच्चे की यह बात सुनकर महाराज सहित सभी लोग ठहाके लगाने लगे।
कहानी से सीख
बच्चों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि ऐसी कोई समस्या नहीं है, जिसे दूर न किया जाए सके। बस, इसके लिए संयम और बुद्धिमानी से काम लेने की जरूरत होती है, जैसे इस कहानी में तेनालीराम ने किया।

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