चाननपुर नामक गांव में चमेली नाम की एक महिला रहती थी, जिसके पति का नाम माधो था। चमेली अपने पति से खूब लड़ती-झगड़ती और उस पर अपना रौब झाड़ती थी। दोनों की एक पुत्री भी थी, जिसका नाम चांदकुमारी था।
चांदकुमारी देखने में बहुत ही सुंदर थी। इतनी सुंदर व योग्य होने के बावजूद भी कोई उससे शादी नहीं करना चाहता था। इसका एकमात्र कारण थी चांदकुमारी की मां चमेली। गांव में हर कोई चमेली के झगड़ालू व्यवहार के बारे में जानता था।
वहीं, तेनालीराम अपनी बुद्धिमानी के कारण बेहद प्रसिद्ध थे। उनकी इस प्रसिद्धि के कारण कई लोग उनसे जलते भी थे। एक दिन ऐसे ही ईर्ष्या करने वाले लोगों में से एक व्यक्ति उनके घर आया। वह तेनाली से कहने लगा कि चाननपुर गांव में चांदकुमारी नाम की बहुत ही रूपवती लड़की रहती है। वह उस सुंदर कन्या का रिश्ता तेनालीराम के भाई के लिए लेकर आया है।
वह आदमी चाहता था कि विवाह पश्चात चांदकुमारी भी अपनी मां की तरह अपने पति पर रौब झाड़े और उसे डराकर रखे। यह सोच मन में लिए ही वह तेनाली के यहां आया था, लेकिन वह इस बात से अंजान था कि तेनालीराम का कोई भाई था ही नहीं। तेनालीराम को उस आदमी की खराब नियत का पता शुरू में ही लग चुका था, क्योंकि वे भी चमेली के झगड़ालू आदत के बारे में पहले से ही जानते थे।
तेनाली ठहरा अती बुद्धिमान, उसने नाटक करते हुए लड़की के बारे में और जानकारी ली, अंत में रिश्ते के लिए हामी भरी और उस आदमी को चाय-पानी पिलाकर विदा किया। अब परेशानी यह थी कि विवाह के लिए तेनालीराम को एक भाई की आवश्यकता थी, क्योंकि वह विवाह के लिए हां कर चुका था।
उसकी तलाश में तेनाली दूसरे गांव की ओर चल पड़े। वह युवक की तलाश कर ही रहे थे कि उन्हें रास्ते में एक परेशान युवक मिला। जब तेनालीराम ने उसकी परेशानी का कारण पूछा तो उसने जवाब दिया, “मैं काम की तलाश में हूं। क्या आपके पास मेरे लिए कोई भी काम होगा?”
तेनाली ने उसे काम देने का वादा किया और कहा, “इसके बदले में तुम्हें मेरी इच्छानुसार विवाह करना होगा। तुम निश्चिंत रहो, क्योंकि जिस लड़की से मैं तुम्हारी शादी करवाना चाहता हूं वह बहुत ही सुंदर व योग्य है।”
यह सुनकर वह युवक खुश हो गया। इधर चांदकुमारी के घर भी विवाह के प्रस्ताव को सुनकर सभी लोग खुश थे। जल्दी से पंडित को बुलाकर विवाह की तारीख पक्की की गई और तैयारियां शुरू हो गई।
बड़ी धूमधाम से चांदकुमारी का विवाह सम्पन्न हुआ। विदाई का समय आया तो चांदकुमारी की मां चमेली ने अपनी पुत्री के कान में कहा, “बेटी! मैं तुम्हारे पिता को रोज डरा-धमकाकर अपने नियंत्रण में रखती हूं। अगर तुम भी शुरुआत से ही अपने पति पर रौब झाड़ोगी तो तुम्हारा पति भी तुम्हारे नियंत्रण में रहेगा।” चांदकुमारी ने अपनी मां की बात को ध्यान से सुना और उनकी बात मान ली।
चमेली ने अपने पति माधो को भी कहा कि वह भी थोड़े दिन अपनी पुत्री के यहां हो आए।
धीरे-धीरे समय बीता और चांदकुमारी को यह एहसास हुआ कि उसके पति व तेनालीराम बहुत ही अड़ियल व रूखे स्वभाव के हैं, लेकिन फिर भी वह किसी न किसी बात पर हर रोज अपने पति से लड़ ही लेती थी और अपने गुस्से का प्रदर्शन भी कर देती थी।
इधर माधो भी वहीं रह रहा था, तो तेनालीराम ने उसे दूध, घी, बादाम आदि पौष्टिक भोजन खूब खिलाया और कुछ ही महीनों में उसे तगड़ा बना दिया। जब वह अपने घर चाननपुर लौटने लगा तो तेनालीराम ने उसे अपने पास बुलाया और समझाया, “देखो मित्र! मैं जानता हूं कि इतने वर्षों में तुमने बहुत कुछ सहा है। अगर तुम शुरुआत से ही अपनी पत्नी से डरने के बजाय उसके बातों और गुस्से का उल्टा जवाब देते और उसे समझाते तो आज यह नौबत नहीं आती है। इसलिए अब वक्त आ गया है, जब तुम्हें हिम्मत दिखाकर अपनी पत्नी के गुस्सैल स्वभाव को ठीक करना होगा। अब तुम्हें खुद पता है कि तुम्हें क्या करना है। तुम्हें खुद ही अपनी मदद करनी होगी।”
माधो तेनालीराम की बात समझ गया। उसने उन्हें शुक्रिया कहा और अपने घर की ओर रवाना हुआ। जब वह घर पहुंचा तो चमेली उसे देखकर बेहद खुश हुई। उसने अपने पति का खूब आदर सत्कार तो किया, लेकिन फिर वह उस पर रौब झाड़ने के बहाने ढूंढने लगी।
ऐसा सोचते हुए वह जैसे ही अपने पति पर चिल्लाने के लिए आगे बढ़ी कि इतने में उसके पति ने उसे खरी-खोटी सुनाना शुरू कर दिया। वह उस पर खूब गुस्सा करने लगा, उसकी बातें सुनकर सारे पड़ोसी वहां आ गए। सबने माधो को शांत कराने की कोशिश की, लेकिन माधो का गुस्सा सातवें आसमान पर था। इतनी बातें सुनकर चमेली को सबक मिल चुका था। उसकी आंखें भर आई थी, उसे पता चल गया था कि जब कोई किसी को बुरा बोलता है या उसका सम्मान नहीं करता तो कितना दुख होता है। थोड़ी देर में माधो का गुस्सा भी शांत हो गया और उसने चमेली से माफी मांगी और कहा कि उसने यह सब सिर्फ उसे सबक सिखाने के लिए किया था।
अब चमेली भी पूरी तरह बदल गई थी और उसने भी अपने बुरे बर्ताव के लिए माधो से माफी मांगी। ये सब होने के बाद, उसने अपनी पुत्री चांदकुमारी को भी समझा दिया था कि वह भी अपने पति की कही बातों को मानें और उससे लड़ाई-झगड़ा न करे। साथ ही उसने अपनी बेटी को यह भी कहा कि किसी भी रिश्ते में स्नेह और सम्मान होना बहुत जरूरी है। अपनी मां से यह सब सुनने के बाद चांदकुमारी भी अपने पति के साथ आदर-सम्मान और खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगी।
कहानी से सीख
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी अपने माता-पिता, भाई-बहन, दोस्तों व प्रियजनों को कम नहीं आंकना चाहिए, बल्कि उनके साथ प्रेम व विश्वास से अपना जीवन खुशी-खुशी बिताना चाहिए। किसी भी रिश्ते में आपसी समझ और मान-सम्मान बहुत जरूरी होता है।
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